घोड़लियो:-
घोड़लियो अर्थात घोड़ा, बाबा की सवारी के लिए पूजा जाता है, कहते है कि बाबा रामदेव ने बचपन में अपनी माँ मैणादे से घोडा मंगवाने की जिद कर ली थी । बहुत समझाने पर भी बालक रामदेव के न मानने पर आखिर थक हारकर माता ने उनके लिए एक दरजी (रूपा दरजी) को एक कपडे का घोडा बनाने का आदेश दिया तथा साथ ही साथ उस दरजी को कीमती वस्त्र भी उस घोड़े को बनाने हेतु दिए । घर जाकर दरजी के मन में पाप आ गया और उसने उन कीमती वस्त्रों की बजाय कपडे के पूर (चिथड़े) उस घोड़े को बनाने में प्रयुक्त किये ओर घोडा बना कर माता मैणादे को दे दिया माता मैणादे ने बालक रामदेव को कपडे का घोड़ा देते हुए उससे खेलने को कहा परन्तु अवतारी पुरुष रामदेव को दरजी की धोखाधड़ी ज्ञात थी । अतः उन्होंने दरजी को सबक सिखाने का निर्णय किया ओर उस घोड़े को आकाश में उड़ाने लगे यह देखकर माता मैणादे मन ही मन में घबराने लगी उन्होंने तुरंत उस दरजी को पकड़ कर लाने को कहा दरजी को लाकर उससे उस घोड़े के बारे में पूछा तो उसने माता मैणादे व बालक रामदेव से माफ़ी मांगते हुए कहा कि उसने ही घोड़े में धोखाधड़ी की है ओर आगे से ऐसा न करने का वचन दिया । यह सुनकर रामदेव जी वापिस धरती पर उतर आये व उस दरजी को क्षमा करते हुए भविष्य में ऐसा न करने को कहा इसी धारणा के कारण ही आज भी बाबा के भक्तजन पुत्ररत्न की प्राप्ति हेतु बाबा को कपडे का घोडा बड़ी श्रद्धा से चढाते है ।
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घोड़लियो अर्थात घोड़ा, बाबा की सवारी के लिए पूजा जाता है, कहते है कि बाबा रामदेव ने बचपन में अपनी माँ मैणादे से घोडा मंगवाने की जिद कर ली थी । बहुत समझाने पर भी बालक रामदेव के न मानने पर आखिर थक हारकर माता ने उनके लिए एक दरजी (रूपा दरजी) को एक कपडे का घोडा बनाने का आदेश दिया तथा साथ ही साथ उस दरजी को कीमती वस्त्र भी उस घोड़े को बनाने हेतु दिए । घर जाकर दरजी के मन में पाप आ गया और उसने उन कीमती वस्त्रों की बजाय कपडे के पूर (चिथड़े) उस घोड़े को बनाने में प्रयुक्त किये ओर घोडा बना कर माता मैणादे को दे दिया माता मैणादे ने बालक रामदेव को कपडे का घोड़ा देते हुए उससे खेलने को कहा परन्तु अवतारी पुरुष रामदेव को दरजी की धोखाधड़ी ज्ञात थी । अतः उन्होंने दरजी को सबक सिखाने का निर्णय किया ओर उस घोड़े को आकाश में उड़ाने लगे यह देखकर माता मैणादे मन ही मन में घबराने लगी उन्होंने तुरंत उस दरजी को पकड़ कर लाने को कहा दरजी को लाकर उससे उस घोड़े के बारे में पूछा तो उसने माता मैणादे व बालक रामदेव से माफ़ी मांगते हुए कहा कि उसने ही घोड़े में धोखाधड़ी की है ओर आगे से ऐसा न करने का वचन दिया । यह सुनकर रामदेव जी वापिस धरती पर उतर आये व उस दरजी को क्षमा करते हुए भविष्य में ऐसा न करने को कहा इसी धारणा के कारण ही आज भी बाबा के भक्तजन पुत्ररत्न की प्राप्ति हेतु बाबा को कपडे का घोडा बड़ी श्रद्धा से चढाते है ।
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पगलिया:-
पगलिया "पद-चिन्हों" का ही राजस्थानी भाषा में पर्याय है । बाबा के पगलिये श्रद्धालु अपने घर में पूजा के मंदिर या अन्य पवित्र स्थान पर रखते है । पगलियों की महिमा का वर्णन इस दोहे में किया गया है-
और देवां का तो माथा पूजीजे ।
मारे देव रा पगलिया पूजीजे ।।
मारे देव रा पगलिया पूजीजे ।।
भावार्थ :- अर्थात सभी देवताओं के शीश की वंदना होती है जबकि बाबा रामदेव एकमात्र ऐसे देव है जिनके पद चिन्ह (पगलिये) पूजे जाते है । सामान्यता भक्तजन संगमरमर पत्थर के बने पगलिये अपने घरो को ले जाते है । कई भक्तजन सोने चांदी आदि बहुमूल्य धातु के बने पगलिये भी अपने घरों को ले जाते है एवं उनका नित्य प्रतिदिन श्रद्धा भाव से पूजन करते है ।
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गुग्गल धूप:-
गुग्गल धूप एक प्रकार का धूप है जो की मुख्यतया राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रो में पाया जाता है । यह दिखने में गोंद की तरह होता है । यह पेड़ों की छाल से निकलता है । माना जाता है कि बाबा प्रसाद चढाने से ज्यादा धूप खेवण से प्रसन्न होते है । गुग्गल धूप की महता इस दोहे में बखान की गयी है -
हरजी ने हर मिल्या सामे मारग आय ।
पूजण दियो घोड़ल्यो धूप खेवण रो बताय ।।
पूजण दियो घोड़ल्यो धूप खेवण रो बताय ।।
भावार्थ :- बाबा ने अपने परम भक्त हरजी भाटी को यह सन्देश देते हुए कहा कि "हे हरजी संसार में मेरे जितने भी भक्त है उनको तू यह सन्देश पहुंचा की गुग्गल धूप खेवण से उनके घर में सुख-शांति रहेगी एवं उस घर में मेरा निवास रहेगा ।" बाबा के भक्तजन गुग्गल धूप के अलावा भी अन्य कई धूप यथा बत्तीसा, लोबान, आशापुरी आदि हवन में उपयोग लेते है ।
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काजल :-
काजल से आशय बाबा के निज मंदिर में रखी अखंड ज्योत से उत्पन धुंए से है । प्रचलित मान्यता है कि बाबा रामदेव के श्रद्धालु मंदिर से अपने घर उस काजल को ले जाते है और उसमे देशी घी मिला कर अपनी आँखों में लगाते है जिससे कि उनकी आँखों से सम्बंधित बीमारियों से छुटकारा मिलता है ।
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रामदेवजी का जम्मा जागरण:-
जम्मा जागरण रामदेवजी की लीला का बखान करने का सबसे पुराना स्रोत हैं । पुराने समय में बाबा का यशोगान हरजी भाटी द्वारा भजनों के माध्यम से किया जाता था । बाबा के जम्मे में रात भर भजनों की गंगा बहती हैं साथ ही गुग्गल धूप एवं अखंड ज्योत भी रात भर प्रज्ज्वलित रहते हैं ।
रामदेवरा में प्रतिमाह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मंदिर के आगे ही जम्मे का आयोजन होता हैं । जम्मे की सम्पूर्ण व्यवस्था यहाँ के स्थानीय नागरिकों द्वारा की जाती हैं । रात 9 बजे मंदिर के पट्ट बंद होने के बाद से ही यहाँ पर जम्मा शुरू हो जाता हैं जो कि अल सुबह तक चलता हैं । जम्मे में सैकड़ों भक्त रात भर भक्ति सरिता का आनंद लेते हैं । जम्मे में नजदीकी पोकरण शहर के ही भजनगायक भक्तिरस बहा कर सम्पूर्ण वातावरण को भक्तिमय बनाते हैं । कई श्रद्धालु भी अपनी प्रभु भक्ति से प्रेरित होकर बाबा के भजनों पर नाचते झूमते हैं । रामदेवरा में प्रतिवर्ष 31 दिसंबर को नए वर्ष के आगमन की ख़ुशी में अनोपगढ़ से आये भक्तो द्वारा जम्मा आयोजित किया जाता हैं । आज भी बाबा के भक्त अपनी मन्नत पूरी होने पर बाबा के जम्मे का आयोजन करवाते हैं एवं जम्मे में उपस्थित सभी भक्तों की तन मन से सेवा करते हैं ।
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"जय बाबा रामदेव जी री"
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