श्री अजमल जी को द्वारकानाथ के दर्शन:-

 राजा अजमल जी द्वारकानाथ के परमभक्त होते हुए भी उनको दु:ख था कि इस तंवर कुल की रोशनी के लिये कोई पुत्र नहीं था । दूसरा दु:ख था कि उनके ही राजरू में पड़ने वाले पोकरण से 3 मील उत्तर दिशा में भैरव राक्षस ने परेशान कर रखा था । इस कारण राजा रानी हमेशा उदास ही रहते थे ।

            सन्तान ही माता-पिता के जीवन का सुख है । राजा अजमल जी पुत्र प्राप्ति के लिये दान पुण्य करते, साधू सन्तों को भोजन कराते, यज्ञ कराते, नित्य ही द्वारकानाथ की पूजा करते थे । इस प्रकार राजा अजमल जी भैरव राक्षस को मारने का उपाय सोचते हुए द्वारका जी पहुंचे । जहां अजमल जी को भगवान के साक्षात दर्शन हुए, राजा के आखों में आंसू देखकर भगवान में अपने पिताम्बर से आंसू पोछकर कहा, हे भक्तराज रो मत मैं तुम्हारा सारा दु:ख जानता हूँ । मैं तेरी भक्ती देखकर बहुत प्रसन्न हूँ, माँगो क्या चाहिये तुम्हें मैं तेरी हर इच्छायें पूर्ण करूँगा ।
            भगवान की असीम कृपा से प्रसन्न होकर बोले हे प्रभु अगर आप मेरी भक्ती से प्रसन्न हैं तो मुझे आपके समान पुत्र चाहिये याने आपको मेरे घर पुत्र बनकर आना पड़ेगा और राक्षस को मारकर धर्म की स्थापना करनी पड़ेगी । तब भगवान द्वारकानाथ ने कहा- हे भक्त! जाओ मैं तुम्हे वचन देता हूँ कि पहले तेरे पुत्र विरमदेव होगा तब अजमल जी बोले हे भगवान एक पुत्र का क्या छोटा और क्या बड़ा तो भगवान ने कहा- दूसरा मैं स्वयं आपके घर आउंगा । अजमल जी बोले हे प्रभू आप मेरे घर आओगे तो हमें क्या मालूम पड़ेगा कि भगवान मेरे धर पधारे हैं, तो द्वारकानाथ ने कहा कि जिस रात मैं घर पर आउंगा उस रात आपके राज्य के जितने भी मंदिर है उसमें अपने आप घंटियां बजने लग जायेगी,महल में जो भी पानी होगा (रसोईघर में) वह दूध बन जाएगा तथा मुख्य द्वार से जन्म स्थान तक कुमकुम के पैर नजर आयेंगे वह मेरी आकाशवाणी भी सुनाई देगी और में अवतार के नाम से प्रसिद्ध हो जाउँगा ।
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बाबा रामदेव जी का जन्म :-
जैसे की  श्री मद्भागवत गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि:-    
                 यदा  यदा  ही  धर्मस्य  ग्लानिर्भवति  भारत।
                 अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सुजाम्यहम।।
अर्थात:-हे भारत जब जब धर्म की हानि, अधर्म की वृध्दि होती है, तब तब में ही अपने रूप को रचता हूँ और पापियों का नाश करके धर्म की स्थापना करता हूँ।

                    परित्राणाय साधुनां विनाशायच दुष्कृताम।
                   धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।
अर्थात:- साधू पुरुषों का उध्दार करने और पापियों का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए में युग युग में प्रकट होता हूँ।

 

इसी प्रकार जब कलयुग अपना घोर रूप दिखने लगा जिसके कारण समाज में ऊंच-नीचसाम्प्रदायिकतासामाजिक बुराईयाँ और पश्चिमी राजस्थान में भैरव राक्षस का आतंक अपने चरम सीमा पर पहुँच गया तब भगवान विष्णु ने उन्डू-काश्मीर (पोकरण ) के राजा अजमल जी के घर भद्रपद शुक्ल  (बीज)संवत १४०९ में श्री बाबा रामदेव जी महाराज के रूप में अवतार लिया । उस समय सभी मंदिरों में घंटियां बजने लगीं, तेज प्रकाश से सारा नगर जगमगाने लगा । महल में जितना भी पानी था वह दूध में बदल गया, महल के मुख्य द्वार से लेकर पालने तक कुम कुम के पैरों के पदचिन्ह बन गए, महल के मंदिर में रखा संख स्वत: बज उठा । उसी समय राजा अजमल जी को भगवान द्वारकानाथ के दिये हुए वचन याद आये और एक बार पुन: द्वारकानाथ की जय बोली । इस प्रकार ने द्वारकानाथ ने राजा अजमल जी के घर अवतार लिया । 
जय बाबा की.... बाबो भली करे.....!
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